रिपोर्टर/ तोषन प्रसाद चौबे/सिद्धार्थ न्यूज़
पूरी दुनिया के मानव समुदाय को मेरी ओर से गुरू घासीदास बाबा जी के जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हम प्रत्येक वर्ष 18 दिसम्बर को गुरू घासीदास बाबा की जयंती मनाते हैं इतना ही नहीं बल्कि पूरे महीना को हम गुरू पर्व के रूप में मनाते हैं कुछ स्थानों में जनवरी, फरवरी और मार्च के महीने में भी गुरू घासीदास बाबा जी की जयंती मनाने की प्रथा का शुरूआत हो चूका है। मगर बड़ी दुर्भाग्य की बात है हम अधिकतर आयोजनों में केवल उत्सवधर्मी ही रह जाते हैं क्योंकि जयंती आयोजन के दौरान हम गुरू घासीदास बाबा के संदेश और उसमें निहित दर्शनों की कोई चर्चा ही नहीं करते।
अतः आज हम गुरू घासीदास बाबा की जयंती के अवसर पर उनके प्रचलित संदेश और उसमें निहित उनके दर्शन की चर्चा करेंगे, जो इस प्रकार से हैं:-
# मनखे-मनखे एक बरोबर (सभी मनुष्य एक बराबर हैं।):- बाबा जी का यह संदेश मानव-मानव के बीच व्याप्त असमानता को समाप्त करने के उनके लक्ष्य पर आधारित समानता का सिद्धांत है जो पूरी दुनिया भर में समानता पर आधारित समस्त दर्शनों में सर्वश्रेष्ठ प्रासंगिक दर्शन है। मनखे-मनखे एक समान उन सभी कुटिल सिद्धांतों के अस्तित्व का अंतिम निदान भी है जो मानव को मानव से ऊंचनीच होने का कपोल कल्पित झूठा प्रमाण प्रस्तुत करने का षड्यंत्र करती है। ‘‘मनखे-मनखे एक समान’’ का सिद्धांत छुआछूत, जातिवाद, ऊंच-नीच, धार्मिक संघर्ष, के साथ ही झूठे धार्मिक सिद्धांतो के लिए ब्रम्हास्त्र है।
# सत्य ही मानव का आभूषण है:- न्याय और सत्य के साझे समर्थन पर आधारित बाबा जी का यह दर्शन पूरी दुनिया के समस्त दर्शनों में सर्वश्रेष्ठ प्रासंगिक दर्शन है।
# सतनाम को मानो:- सतनाम का तात्पर्य ‘‘सत्य के नाम’’ से है जो पंच तत्वों के योग से बना यौगिक शब्द है।
# पराय स्त्री को माता-बहन मानो:- यदि आप किसी को अपना मित्र मानते हैं तो वह भी आपको मित्र समझता है और यदि आप किसी को शत्रु बना लेते हैं तो वह भी आपसे शत्रुता ही करता है। इसी प्रकार से यदि हम किसी अन्य के माता, बहन-बेटियों और बहुओं को माता-बहन मानेंगे तो वह भी हमारी बहन-बेटियों को अपनी माता-बहन के समान ही मानेंगे। मगर दुर्भाग्य की बात है कि हम लगभग हर स्त्री को भोग की वस्तु की तरह देखने वाले दरिंदे हो चूके हैं इसीलिये आये दिन मीडिया में हम निर्भया बनती बेटियों के लिये मोमबत्ती जलाने के लिये विवश होते जा रहे हैं।
# जुआ मत खेलो:- परिवार के आर्थिक और सामाजिक पतन पर रोक लगाने के ध्येय से बाबा जी का संदेश।
# नशे का सेवन मत करो:- आर्थिक, सामाजिक और नैतिक पतन को रोकने के उद्देश्य से।
# दोपहर में खेत मत जोतो:- पशु क्रुरता नियंत्रण पर आधारित संदेश है। क्योंकि तब एक जोड़ बैल को ही तीन से अधिक जोतहार द्वारा अमानवीय तरीके से हल जोतने के कार्य में लगाया जाता था जिससे बैल की मृत्यु भी हो जाती थी।
# पितृ (पितर) पूजा के बजाय जिन्दा माता-पिता और बड़ों-बुजुर्गों की सेवा करो:-
# लड़की/लड़के में भेद मत करो:- महिलाओं के मानव अधिकारों पर आधारित बाबा जी का यह संदेश ‘‘कन्या भ्रुण हत्या पर रोक’’ लगाने में कारगर शाबित है।
# मूर्ति पूजा मत करो:-
# जीव हत्या मत करो:-
# शाकाहार को अनाओ:-
# जाति-पाति के प्रपंच में मत पड़ो:- फूट डालो और राज करो का सिद्धांत है।
# व्यभिचार मत करो:-
# चोरी मत करो:-
आपसे अनुरोध है कि आप भी समाज की बेहतरी के लिये गुरू घासीदास बाबा के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में भागीदार बनें।
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गुरु घासीदास बाबा और सतनाम धर्म से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :
1- गुरु घासीदास बाबा ने जीवन पर्यंत मूर्ति पूजा का विरोध किया और कुछ लोग उनके ही मूर्ति बनाकर पूजने लगे हैं।
2- गुरु घासीदास बाबा ने चमत्कार और अतिसंयोक्तिपूर्ण कपोल कल्पित कहानियों का विरोध किया और लोग उनके बारे में ही चमत्कारिक अफवाहें फैला दी।
# मरणासन्न को मृत बताकर, मृत बछिया को जिंदा करने की अफवाह फैलाई गई।
# भाटा के बारी से मिर्चा लाना : गुरु घासीदास बाबा ने भाटा के बारी से मिर्च नही लाया बल्कि उन्होंने कृषि सुधार के तहत एक समय में, एक ही भूमि में, एक साथ एक से अधिक फसल के उत्पादन करने का तरीका सिखाया। जैसे – राहर के साथ कोदो, धान अथवा मूंगफली का उत्पादन। चना के साथ धनिया, सूरजमुखी, अलसी और सरसों का उत्पादन। सब्जी में मूली के साथ धनिया और भाजी; बैगन के साथ मिर्च, और मीर्च के साथ टमाटर, इत्यादि।
# गरियार बैल को चलाना : सामाजिक रूप से पिछड़े, दबे लोगों को मोटिवेट कर शोषक वर्ग के बराबर लाने का काम किया; अर्थात दलितोद्धार का कार्य किया। इसके तहत उन्होंने ऐसे लोगों (शोषित लोगों) को चलाया, आगे बढ़ाया जो स्वयं शोषक समाज के नीचे और दबे हुए मानकर उनके समानांतर चलने का साहस नहीं करते थे उन्हें सशक्त कर उनके समानांतर लाकर बराबर का काम करने योग्य बनाया।
# शेर और बकरी को एक घाट में पानी पिलाना : गुरु घासीदास बाबा सामाजिक न्याय के प्रणेता थे, उन्होंने शोषित और शोषक दोनों ही वर्ग के योग से सतनाम पंथ की स्थापना करके सबको एक समान सामाजिक स्तर प्रदान किया, एक घाट मतलब एक ही सामाजिक नियम/ भोज में शामिल किया।
# 5मुठा धान को बाहरा डोली में पुरोकर बोना : गुरु घासीदास बाबा ने बाहरा डोली में 5मुठा धान को पुरोकर बोया का मतलब कृषि सुधार हेतु रोपा पद्धति का शुरआत किया, कुछ विद्ववान मानते हैं सतनाम (पंच तत्व के ज्ञान) को पूरे मानव समाज में विस्तारित किया।
# गोपाल मरार का नौकर : गुरु घासीदास बाबा को कुछ विरोधी तत्व गोपाल मरार का नौकर मानते हैं जबकि गोपाल मरार उन्हें गुरु मानते थे। हालांकि शुरुआती दिनों में गुरु घासीदास बाबा कृषि सुधार हेतु वैज्ञानिक पद्धति के विकास करने के लिए गोपाल मरार के बारी में अधिक समय देते थे और बहुफसल उत्पादन को लागू कर मरार समाज को प्रशिक्षण देने का काम करते थे।
# अमरता और अमरलोक का सिद्धांत : गुरु घासीदास बाबा द्वारा किसी भी प्रकार से भौतिक रूप से अमरता और अमर लोक या अधमलोक की बात नहीं कहा, उन्होंने नाम की अमरता और अच्छे बुरे सामाजिक व्यवस्था की बात कही जिसे कुछ लोगों द्वारा समाज को गुमराह किया जा रहा है।
3- गुरु घासीदास बाबा ने जन्म आधारित महानता का विरोध किया, इसके बावजूद समाज मे जन्म आधारित महानता की परंपरा बनाकर समाज में थोपने का प्रयास किया जा रहा है। एक परिवार विशेष में जन्म लेने वाले अबोध शिशु को भी धर्मगुरु घोषित कर दिया जा रहा है।
4- गुरु घासीदास बाबा और गुरु बालकदास के योगदान को भुलाकर काल्पनिक पात्र को आराध्य बनाया जा रहा है। इतना ही नहीं ऐसे लोगों को भी समाज का आराध्य बताया जा रहा है जो वास्तव में आराध्य होने के लायक नहीं है या समाज में उनका कोई योगदान नहीं रहा है।
5- मनखे-मनखे एक समान : ये एक ऐसा क्रांतिकारी सिद्धांत है जो मानव को मानव बनने का अधिकार देता है। मनखे मनखे एक समान का सिद्धांत मानव के सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक विकास और समानता के लिए अत्यंत प्रभावी रहा है।
6- मानव अधिकारों की नींव : सतनाम रावटी के माध्यम से गुरु घासीदास बाबा द्वारा लोगों को बताया गया कि सभी मनुष्य समान हैं, कोई उच्च या नीच नहीं है; प्राकृतिक संसाधनों में भी सभी मनुष्य का बराबर अधिकार है।
7- महिलाओं के मानव अधिकार और स्वाभिमान की रक्षा : गुरु बालकदास के नेतृत्व में महिलाओं के मानव अधिकार और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अखाड़ा प्रथा की शुरुआत कराया गया। पराय (गैर) स्त्री को माता अथवा बहन मानने की परम्परा की शुरूआत कर स्त्री को विलासिता और भोग की वस्तुएं समझने वाले अमानुष लोगो को सुधरने का रास्ता दिखाया।
8- सामाजिक बुराइयों अंत : गुरु घासीदास बाबा द्वारा समाज मे व्याप्त कुरीतियों और सामाजिक बुराइयों को विरोध करते हुए उसे समाप्त करने का काम किया गया; उन्होंने सामाजिक बुराइयों से मुक्त सतनाम पंथ की स्थापना की थी; परंतु आज जो लोग स्वयं को सतनाम पंथ के मानने वाले प्रचारित करते हैं वे समाज में सैकड़ों सामाजिक बुराइयों को सामाजिक नियम की आत्मा बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
9- प्रत्येक जीव के लिए दया और प्रेम : गुरु घासीदास बाबा ने केवल मानव ही नहीं बल्कि अन्य सभी जीव के अच्छे जीवन की बात कही, इसी परिपेक्ष्य में उन्होंने हिंसा, नरबलि, पशुबलि और मांसाहार का विरोध किया था। इसके बावजूद स्वयं को सामाजिक /धार्मिक नेता समझने वाले कुछ लोग मांसाहार के माध्यम से जीव हत्या को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।
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अन्य महत्वपूर्व संदेश :
# जम्मों जीव हे भाई – बहिनी बरोबर । (हुलेश्वर जोशी)
# शिक्षा ग्रहण पहले, भोजन ग्रहण नहले । (माता श्यामा देवी जोशी)
# आपके पैरों मे चाहे जूते न हों, मगर हाथों मे किताब जरूर होनी चाहिए ।
# भारतीय संविधान दुनिया की सबसे अच्छी किताब मे से एक है, इसे जरूर पढ़ें ।
# धार्मिक कट्टरपंथी अनुचित है ।
# सुंदरता का पैमाना गोरी चमड़ी नहीं।
# पत्नी आपकी सेविका या दासी नहीं बल्कि जीवन की सहभागिनी है ।
# धर्मवादी अथवा जातिवादी होना किसी भी स्थिति में धर्म निरपेक्षता से बेहतर नहीं हो सकता ।