Home बड़ी खबर “सतनाम आन्दोलन एवं सामाजिक पुर्नजागरण के प्रवर्तक” सतखोजी संत शिरोमणि गुरू घासीदास की जयंती 18 दिसम्बर पर विशेष लेख –

“सतनाम आन्दोलन एवं सामाजिक पुर्नजागरण के प्रवर्तक” सतखोजी संत शिरोमणि गुरू घासीदास की जयंती 18 दिसम्बर पर विशेष लेख –

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“सतनाम आन्दोलन एवं सामाजिक पुर्नजागरण के प्रवर्तक” सतखोजी संत शिरोमणि गुरू घासीदास की जयंती 18 दिसम्बर पर विशेष  लेख –

।।संपादकीय लेख एड. डगेश्वर खटकर।।

 

महान् मानवतावादी, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक क्रांति के जनक, सतनाम आंदोलन (पंथ) के संस्थापक युग पुरूष सत्य अहिंसा के प्रेरणा स्त्रोत समानता और मानवता के पुजारी संत गुरूघासीदास जी ने छत्तीसगढ़ की पावन धरती पर जन्म लिया ।

रायपुर जिला गजेटियर (1993) के अनुसार, संतगुरू घासीदास जी का जन्म अगहन पूर्णिमा सोमवार के दिन 18 दिसम्बर 1756 ई. को वनों से अच्छादित सोनाखान रियासत, जोक नदी के किनारे गांव गिरौदपुरी, तहसील- कसडोल, अनुविभाग- बिलाईगढ़ विधानसभा- बिलाईगढ़, जिला – बलौदाबाजार (रायपुर) के छत्तीसगढ़ राज्य में हुआ। उनके जन्म स्थली, कर्मस्थली और तपोभूमि होने के कारण गिरौदपुरी धाम के नाम से भारतभूमि में प्रसिद्ध है।

उनके पिता महंगूदास और माता अमरौतिन बाई के गर्भ से जन्म हुआ। माता-पिता शील स्वभाव एवं संत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। गुरूघासीदास जी के विलक्षण स्वभाव को देखकर ही उनके पिता जी ने उनका विवाह सिरपुर (बौद्ध स्थल) के अंजोरीदास व सत्यवती उर्फ सावित्री की सुन्दर सुशील, कन्या सफुरा के साथ कर दिया ।सफुरा करूणा दया, त्याग और ममता की साक्षात प्रतिमूर्ति थी। बाबा घासीदास जी के चार पुत्र व एक पुत्री क्रमशः अमरदास जी, बालकदास जी, अगरदास जी, अडगढ़ियादास जी एवं पुत्री सुभद्रा का जन्म हुआ ।भारत भूमि अनेक संत, गुरूओं एवं महापुरूषों की जन्म भूमि रही है। जहां सत्य की खोज, मानवता की रक्षा, इन्सानियत की बहाली एवं अज्ञानता के अंधकार से ज्ञानरूपी सत्य की ज्योति जला उन्हें जगाने एवं उनका उद्धार करने के उद्देश्य से समय-समय पर महापुरूषो ने जन्म लिए जिनमें तथागत गौतम बुद्ध,गुरू रविदास, संत कबीरदास, सतगुरू नानक, गोविन्द सिंह, दादूदयाल, संत नामदेव, संत अछूतानंद, संत चोखामेला, संत गाडगें, संत कर्मामाता, ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी, नारायण गुरू, पेरियार रामास्वामी नायकर, संतशिरोमणी गुरूघासीदास, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, मान्यवर कांशीराम साहब जैसे महान विभूतियों का नाम श्रद्धा एवं सम्मान के साथ याद किये जाते है। इसी कड़ी में संत शिरोमणी गुरूघासीदास ने छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी सोनाखान के घने जंगलो की ओर चले गये। जोक नदी के किनारे छाता पहाड़ के ऊपर अखण्ड तपयोग की फिर गांव के निकट आकर पथरीले वनभूमि तथागत गौतमबुद्ध की तरह अवराधवरा पेड़ के नीचे (जहाँ गुरूद्वारा बना है) में शांत भाव से बैठकर समाधि अवस्था में पहुंच गये।

इसी अवस्था में उन्हें परम सत्य ज्ञान (बुद्धत्व ज्ञान) सतनाम की प्राप्ति हुई। “सत्य ही मानव का आभूषण है”। “सत्य ही सत्य है रोटी, कपड़ा और मकान ऐ तीनों सतलोक समान है ‘सतनाम’ सर्वधर्म का नाम है। सत्य- सच्चाई को धारणा करना ही सर्वधर्म है। अतः स्पष्ट हो जाता है कि ‘सतनाम सभी धर्मो का आधार बिन्दू के रूप में सबके लिए सतनाम पूर्ण मानव धर्म का संदेश कहते है।

जहां गुरूद्वारा बना है और उसके निकट ही असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में जय स्तम्भ अर्थात् जैतखाम (वर्तमान में कुतुममिनार से ऊंचा बना है। ‘सतनाम मनखे मनखे एक बरोबर का उपदेष देने के याद में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन सप्तमी के दिन (गुरू घासीदास को ज्ञान प्राप्त हुआ था) सत्य के प्रतीक सफेद चौकोना ध्वज प्रतिवर्ष गुरूद्वारा में पालों चाढ़ाया (फहराया जाता है।

संत गुरू घासीदास जी के समय 18 वीं सदी में अन्याय अत्याचार कलचुरिय राजाओं द्वारा किया जा रहा था । तत्कालीन धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थितियां विभिन्न कारणों से दूषित एवं कलंकित हो चुकी थी। साधन संपन्न के शासन काल का प्रभुत्व एवं दुष्प्रभाव समाज में धर्म और नैतिकता का पतन हो चला था। शुद्रो व नारियों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उस काल की अनुचित व्यवस्था के परिणाम स्वरूप बहुजन समाज के सारे लोग मानवीय अधिकारों से वंचित हो गये थे। उस विषम परिस्थिति में मानवता का प्रकाश पुंज परमपूज्य गुरूघासीदास का मानव में ज्ञान का द्वीप प्रज्वलित कर उनका उद्धार करने वाला मुक्तिदाता के रूप में हुआ था।

उन्होंने कहा भाग्य- भगवान, पुनर्जन्म, पाप-पुण्य, लोक-परलोक, पुजा-पाठ, देवी-देवता आदि रूढ़िवादी, अंधविश्वास मनुष्य को भुलावे में रखने का षड्यंत्र व साधन मात्र है। मानवता के विनाश के लिए है। जो कुछ व्यक्ति विशेष के हित के अलावा कुछ भी नहीं। जो व्यक्ति अपने ऊपर हो रहे जुल्म को पुनर्जन्म का फल मानता है। उसे भूत-भविष्य एवं वर्तमान में कभी भी सुख शांति व सौहाद्र नहीं मिल सकता क्योंकि जिस धरती पर वह रहता है वहां सुरज, चांद, अग्नि, हवा, पानी, भाई-बन्धु है। जहां उसे सुख नहीं मिल सकता तो उसे कहां, सुख मिलेगा, सुख का अनुभव तो घर-परिवार, समाज के मध्य रहकर ही सम्भव है। मर कर स्वर्ग की आस्था खोखली आशा मृग तृष्णा है। जहां इन्सान स्वयं जीवित है वहीं स्वर्ग है। काल्पनिक स्वर्ग लुभावना मात्र है इसके अलावा और कुछ भी नहीं संत बाबा जी का सिद्धांत है कि जानो मानों-छानों यह तार्किकता और वैज्ञानिकता पर आधारित है

गुरू घासीदास जी कहते है “मंदिरवा में का करे ल जाबो अपन घर ही के देव ल मनाबो” मानव-मानव एक समान नारा दिया। गुरू घासीदास का कहना है कि वह प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार छोड़ दो जो घृणित है एवं जिसके कारण तुम्हे अपमानीत होना पडता है। अपने आप को पहचानों समाज में अपना पहचान बनाओं जीवन के हर एक क्षेत्र में परिवर्तन लाओं तभी एक अच्छे इन्सान के रूप में जाने जाओगे सर्वांगीण विकास तुम्हे ही करना होगा।

स्वयं कष्ट सहकर मध्यम (मुक्ति) मार्ग की तलाश जिस प्रकार से गौतम बुद्ध ने की थी लगभग वही तलाश गुरू घासीदास ने की मानवाधिकारों के महान पथ प्रदर्शक दासता से मुक्ति दृष्टा सम्यक युग बोध का ज्ञान दिया। मानवता के पुजारी, सत्य आंदोलन के मार्गदर्शक गुरू घासीदास जी भेदभाव, छुआछुत,मूर्तिपूजा, रूढ़ीवादी, अंधविश्वास, पितृपक्ष, मृतक भोज के कट्टर विरोधी थे।

दलित-शोषित पिछड़े, पीड़ित, अपमानित एवं बहिष्कृत मानस को सतनाम की पंथ में सहयोग, संगठन और समानता से उच्च कहे जाने वाले जाति एवं समाज से अलग हटकर एक सुसभ्य समाज का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया।

इस प्रकार गुरू घासीदास जी ‘सतनाम आंदोलन का संदेश देते हुए तेलासी नामक गांव में पहुंचे थे जहां 1842 ई. में सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए विशाल ‘सतनाम’ सम्मेलन महासंगम का आयोजन किया। वह महान सतखोजी थे इसलिए उनका समता, स्वतंत्रता और भाईचारा पर विश्वास था।

जिसमें संत बाबा जी की विचार धारा से प्रभावित होकर तेली, कुर्मी, रावत, लोहार, कंवर, गोड़, बिंझवार, लोधी, सोनार, मरार, कॅवट, नाई,धोबी, कहार, गाड़ा, घसिया, मोची, मेहर, भंगी, सतनामी, सूर्यवंशी, रामनामी, आदि अनेक जाति के लोग नर-नारी, बच्चे, बूढ़े जवान सभी सतनाम आंदोलन में भारी संख्या में भाग लेते थे इन सभी जाति के हज़ारों लाखों की संख्या में उनके विचारधारा से प्रभावित होकर सतनामी समाज में शामिल हुए और आज भी अपने नाम के आगे जाति सतनामी लिख रहे हैं । गुरू घासीदास जी से सत्य परख ज्ञान दर्शन पर आधारित मानवतावादी वर्ग विहीन, जाति विहीन सतनाम विचार धारा को स्वीकार कर सतनामी’ कहलाए अर्थात् मानव समाज की स्थापना कर छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि भारत व विदेशों में धर्म और जाति-पाति के नाम पर बंटे मानव जाति के मध्य एक मिशाल कायम की। यह छ.ग. की सबसे बड़ा जाति उन्मूलन था जिसकी जरूरत आज भी इस देश के बहुजन समाज को है। सत पुरूष घासीदास जी के सात प्रमुख उपदेश निम्न है-

1. ‘सतनाम ही सार है, अपने अन्तरात्मा (तर्क) में ‘सतनाम को जानो।

2. सत्य ही मानव का आभूषण है। तर्क, मन, वचन, कर्म से सतगुणी व सतज्ञानी बनों ।

3. मनखे मनखे एक बरोबर अर्थात् धरती पर सभी मानव एक समान है।

4. मूर्तिपूजा, अंधिविष्वास, बली प्रथा, जात-पात, ऊंच-नीच मत मानों, पाखंडवाद से बचो। व्यभिचार, चोरी, झूठ, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष जैसे अनैतिक कर्मों को छोड़ो नैतिक कर्म सत के मार्ग पर चलो।

5.स्त्री और पुरूष समान है। परनारी को माता-बहन मानो।

6 प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करो। मानव सेवा परम धर्म है।

7 जीव हत्या महा पाप है, दोपहर में हल मत चलाओं, बासी खाना मत खाओ।

नशा मुक्ति का आंदोलन चलाया – संत गुरू घासीदास जी ने सात दिव्य संदेश, उपदेश तथा अमृतवाणी आर्शीवचन देते हुए ‘सतनाम’ आंदोलन’ को समाजिक परिवर्तन का रूप दिया। लाखों लोगों के विचार में परिवर्तन लाये और सतनाम पंथ को आगे बढ़ाते हुए वैज्ञानिक एवं तार्किकता से अपने जीवन संघर्ष से संबंधित छत्तीसगढ़ में चार धाम के नाम से प्रसिद्ध है, जिनमें गिरौदपुरी धाम, तेलासी धाम, भण्डारपुरी धाम और अमरपुरी चटुवा धाम है। ये ऐतिहासिक व दार्शनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। बाबाजी की पीढ़ी पुत्र- बालक दास जी ने सतनाम आंदोलन’ को आगे बढ़ाया। सन् 1756 ई. से 1850 ई. तक के जीवनकाल में सन् 1820 ई. – 1830 तक सतनामी समाज के लिए स्वर्णिम युग रहा।

संत गुरू घासीदास की अंतिम समाधी (निर्वाण ) 1850 ई. में माना जाता है। छत्तीसगढ़ के महान संत गुरू बाबा घासीदास जी का जन्मभूमि, कर्मभूमि, महिमाभूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी मेला सतनामियों के साथ सभी मानव जाति के लोगों का महाकुंभ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि बाबा जी के सतनाम पंथ के विचारधारा से प्रभावित होकर उस काल में विभिन्न जाति वर्ग के लाखों लोग पंथ में चलते हुए सतनामी भी बन गए हैं। गिरौदपुरी मेला से देश-विदेश से लाखों की संख्या में सतनाम पंथ’ ज्ञान दर्शन के लिए आते है, प्रतिवर्ष मेला छत्तीसगढ़ शासन-प्रशासन द्वारा आयोजित किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम पर्थी, नृत्य, खड़ाऊ एवं ज्योति कलश जो दिन-रात जलता रहता है, जिससे प्रकाश लेकर “सतनाम ज्ञान” के दीप को जलाकर अंधकार रूपी अज्ञान भगाते है।

छ.ग. के प्रथम सत्याग्रही मंत्री एवं समाज सेवी श्रद्धेय नकुल देव ढ़ीढ़ी जी ने नागपुर कोर्ट में मुक्तावनदास के प्रकरण को लेकर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर से मिले, तब डॉ. अम्बेडकर ने गुरूघासीदास जी के जीवन संघर्ष को बताते हुए जन-जन तक पहुंचाने के लिए संत घासीदास जी की जयंती प्रारंभ करने का प्रेरणा दी। डॉ. अम्बेडकर के विचार को मानकर नकुल देव ढ़ीढ़ी जी ने अपने ग्राम भोरिंग में 18 दिसम्बर 1935 ई. को हर्षो उल्लास के साथ गुरू घासीदास की जयंती मनाने की सपरम्परा प्रारंभ कर ‘पंथी नृत्य’ करने का शुरूवात तो किया परन्तु ज्यादा प्रभाव मान्यवर कांशीराम साहब ने गुरू घासीदास जी के महापर्व को तीन दिवसीय सतनाम’ मेला आयोजित कर संत गुरू घासीदास जी ने सात दिव्य संदेश, उपदेश तथा अमृतवाणी आर्शीवचन देते हुए ‘सतनाम’ आंदोलन’ को समाजिक परिवर्तन का रूप दिया। लाखों लोगों के विचार में परिवर्तन लाये और सतनाम पंथ को आगे बढ़ाते हुए वैज्ञानिक एवं तार्किकता से अपने जीवन संघर्ष से संबंधित छत्तीसगढ़ में चार धाम के नाम से प्रसिद्ध है, जिनमें गिरौदपुरी धाम, तेलासी धाम, भण्डारपुरी धाम और अमरपुरी चटुवा धाम है। ये ऐतिहासिक व दार्शनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। बाबाजी की पीढ़ी पुत्र- बालक दास जी ने सतनाम आंदोलन’ को आगे बढ़ाया। सन् 1756 ई. से 1850 ई. तक के जीवनकाल में सन् 1820 ई. – 1830 तक सतनामी समाज के लिए स्वर्णिम युग रहा।

संत गुरू घासीदास की अंतिम समाधी (निर्वाण ) 1850 ई. में माना जाता है। छत्तीसगढ़ के महान संत गुरू बाबा घासीदास जी का जन्मभूमि, कर्मभूमि, महिमाभूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी मेला सतनामियों के साथ सभी मानव जाति के लोगों का महाकुंभ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि गिरौदपुरी मेला से देश-विदेश से लाखों की संख्या में सतनाम पंथ’ ज्ञान दर्शन के लिए आते है, प्रतिवर्ष मेला छत्तीसगढ़ शासन-प्रशासन द्वारा आयोजित किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम पर्थी, नृत्य, खड़ाऊ एवं ज्योति कलश जो दिन-रात जलता रहता है, जिससे प्रकाश लेकर “सतनाम ज्ञान” के दीप को जलाकर अंधकार रूपी अज्ञान भगाते है।

छ.ग. के प्रथम सत्याग्रही मंत्री एवं समाज सेवी श्रद्धेय नकुल देव ढ़ीढ़ी जी ने नागपुर कोर्ट में मुक्तावनदास के प्रकरण को लेकर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर से मिले, तब डॉ. अम्बेडकर ने गुरूघासीदास जी के जीवन संघर्ष को बताते हुए जन-जन तक पहुंचाने के लिए संत घासीदास जी की जयंती प्रारंभ करने का प्रेरणा दिया। डॉ. अम्बेडकर के विचार को मानकर नकुल देव ढ़ीढ़ी जी ने अपने ग्राम भोरिंग में 18 दिसम्बर 1935 ई. को हर्षो उल्लास के साथ गुरू घासीदास की जयंती मनाने की सपरम्परा प्रारंभ कर ‘पंथी नृत्य’ करने का शुरूवात तो किया परन्तु ज्यादा प्रभाव मान्यवर कांशीराम साहब ने गुरू घासीदास जी के महापर्व को तीन दिवसीय सतनाम’ मेला आयोजित कर बाबा गुरु के जीवन संघर्ष पहुचाने में पूर्ण कामयाब हुए। – गाथा को जनजागृति के माध्यम से बहुजन समान से सर्वमानव समाज तक

जिससे प्रेरणा लेकर देवदास बंजारे जी ने गुरू बाबा के जयंती महोत्सव में होने वाली प्रसिद्ध ‘पंथी नृत्य’ को ढोल और मांदर की झन्कार के साथ जीवन दर्शन को देश और सात समुन्दर पार विदेशों में भी पहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।जिससे प्रेरणा लेकर आज छत्तीसगढ़ के प्रत्येक मुहल्ले, गांव व शहर में दिसम्बर माह जब धान की कटाई- मिजाई होती है तब छत्तीसगढ़ के लोग धन-धान्य से सुख-समृद्ध और सम्पन्न हो जाते हैं। इसलिए संत घासीदास जी की जयंती 18 दिसम्बर को महापर्व के रूप में हर्षोल्लास के साथ परम्परागत रूप में पूरे मानव समाज के लोग मनाते हैं और वह लगातार 2-3 माह तक सतखोजी संत की जयंती महोत्सव जारी रहता है। वैसे भी छत्तीसगढ़ को “धान का कटोरा’ कहलाता है।इसलिए प्रतिवर्ष गिरौदपुरी में फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में पंचमी, छठवीं और सप्तमी को तीन दिवसीय सतनाम पंथ का विशाल मेला लगता है। अंतिम दिन सप्तमी को गुरूद्वारा में पालो चढ़ाया जाता है। इस वर्ष मार्च 2023 को मेला लगा जिसमें लाखों की संख्या में लोग उपस्थित हुए थे । जो ग्राम गिरौदपुरी धाम से लेकर तपोभूमि छाता पहाड़ एवं जोक नदी तक लगभग 20 किमी. क्षेत्र में फैला होता है। छ.ग. के विभिन्न क्षेत्र के अलावा पूरे विश्व भर से लोग लाखों की संख्या में पहुंचते है। वे सत्य से शांतिमय, सुखमय और मंगलमय की कामना करते है।

इस देश में समय-समय पर जन्मे संत, गुरूओं और महापुरूषों के विचारधारा के आधार पर सत्य की पुर्नस्थापना के लिए हमें वर्तमान सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को मन मस्तिष्क पर चिन्तन- विचार करना पड़ेगा। हमारा उद्देश्य संत बाबा गुरू घासीदास जी एवं भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी के द्वारा छोड़े गये अधूरे कारवां को पुरा करना है।

हमारे महापुरूषों ने अपना दायित्व निभाकर जिन बुद्धिजीवी, शिक्षित एवं अधिकारी-कर्मचारी को सम्पन्न बनाकर पूर्ण सम्मान दिया है। आज समाज के कमजोर वर्ग को स्वाभिमानी, सम्मानित व स्वालम्ब बनाना, समाज को शिक्षित, संगठित व संघर्शशील करना उनका नैतिक कर्तव्य और दायित्व बनता है। सही नेतृत्व कर समाज को उचित मार्गदर्शन व दिशा निर्देशन कर सामाजिक भागीदारी में सहयोग प्रदान करना है।सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के विचार पर चलकर इस युग में “सतनाम आंदोलन” से एक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक विचार धारा वाले लोगों को एक से अधिक संगठन नहीं बनाना चाहिए। एक नेतृत्व एक झण्डे और एक पहचान को स्वीकार कर समाज को सुदृढ़ करना अति आवश्यक है । तब शासन सत्ता तक पहुंचा जा सकता है। तभी समाज का भविष्य सुधर सकता है। अन्यथा समाज पुनः उसी पुराने स्तर (गुलामी) की ओर तेजी से अग्रेसित हो रहा है।

पुरस्कार एवं सम्मान -गुरू घासीदास सामाजिक चेतना एवं दलित उत्थान सम्मानः सामाजिक चेतना तथा उत्थान हेतु उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति/संस्था को प्रतिवर्ष यह सम्मान प्रदाय किया जाता है। इस सम्मान में 2 लाख रूपए की राशि पुरस्कार स्वरूप दिया जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार के आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा इस वर्ष प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में दिनांक 18 दिसम्बर से 25 दिसम्बर 2023 तक गुरु घासीदास जयंती सप्ताह के रूप में मनाये जाने की भी घोषणा की है जहां जिला स्तर पर पंथी नृत्य का आयोजन कर राज्य स्तरीय प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार दिया जावेगा। जिला स्तर पर कार्यक्रम में पंथी नृत्य के अलावा निबंध, लेखन, वाद विबाद,चित्रकला प्रतियोगिता को भी शामिल किया जा सकता है।

जहां से गुरूओं ने वंचित मानव समाज को ऊपर उठाने में सदियों से प्रायास किया था। वर्तमान में छत्तीसगढ़ प्रदेश में एस.सी. वर्ग का आरक्षण में कटौती कर 4 प्रतिशत कम कर दिया गया है। साथ ही साथ देश में संविधान संशोधन, आरक्षण की समीक्षा व पदोन्नती में आरक्षण समाप्त करने का षड़यंत्र तथाकथित उच्च वर्ग के नेता एक प्रमुख पार्टी द्वारा किया जा रहा है।

यदि आज सत्ता पर कब्जा नहीं करेंगे तो आने वाले समय में हमारे युवा पीढ़ी का (सपना) भविष्य अंधकारमय हो जायेगा, हमें अपने किये हुए कारनामें का फल भुगतना पड़ेगा व हमें भावी पीढ़ी सम्मान नहीं देगी। इसी आशा और विश्वास के साथ समाज को सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन चलाने वालों का आपसी तालमेल बैठाकर भाईचारा के साथ मानव समाज का समुचित उद्धार, उत्थान व विकास करें।

सतनाम पंथ को लेकर यशवंत सतनामी जी के विचार – यशवंत सतनामी साहू(तेली) जाति के थे उनका कहना है की सतनाम पंथ और सतनामी ऐसा समाज जो की हम तेली जाति के लोगों को सम्मान पूर्वक अपने समाज में मिलाकर रोटी- बेटी की लेन देन भी शुरू कर दिए हैं जिससे मैं अभिभूत हूं।

सत्य की विजय हो…..जय सतनाम! जस भीम! जय भारत!

एड. डगेश्वर खटकर,ग्राम-मुड़पार,पोस्ट- सरसीवां ,तहसील- सरसीवां,जिला सारंगढ़ बिलाईगढ़ (छ.ग.)।मो. 8109837025

mail:- advocatedageshkhatker@gmail.com