Home बड़ी खबर 23 मार्च – अमर शहीद भगत सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन के लेख।

23 मार्च – अमर शहीद भगत सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन के लेख।

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23 मार्च – अमर शहीद भगत सिंह की शहादत दिवस के अवसर पर क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन के लेख।

एक सामाजिक तबके के रूप में युवा किसी भी समाज का सबसे सक्रिय और ऊर्जावान तबका होता है। सभी देशों के इतिहास में अत्यंत समर्पण एवं आत्म बलिदान की क्रांतिकारी भावना से लैस होकर एक प्रगतिशील समाज के निर्माण की प्रक्रिया में बहुत कुछ योगदान देने के लिए वे अगली कतारों में रहे हैं। भारत के युवाओं ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरूद्ध लड़ाई में महान् एवं गौरवशाली भूमिका निभाई है। शहीद भगत सिंह,सुखदेव, राजगुरु ,अवतार सिंह पाश,अशफाकुल्ला,प्रीतीलता वड्डेदार,कल्पना दत्त जोशी,चन्द्रशेखर आजाद सरीखे हजारों युवाओं ने देशभक्ति, आजादी और समतावादी समाज के महान् आदर्शो से प्रेरित होकर ब्रिटिश राज के शोषण और अत्याचार के खिलाफ लड़ा था। एक नये भारत के महान सपनों को साकार करने के लिए हजारों युवाओं ने अपना जीवन कुर्बान किया।

क्या हम आजाद हैं?

लेकिन आजादी के 75 सालों में हालात कैसे हैं? आज हमारा देश घोर सामाजिक-आर्थिक- राजनैतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। तथाकथित आजादी के सात दशकों के बाद भी आज जनता के विशाल बहुमत के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित मौलिक समस्याएं अनसुलझी पड़ी है। हर गुजरे वर्ष के साथ बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। लाखों लाख गांव अत्यधिक गरीबी की चपेट में हैं और या तो बाढ़ या भूकंप या फिर अकाल की मार झेलना इनकी नियती बन गई। पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी की बदतर होती समस्या परिस्थिति को भयावह बना रही है। विदेशी कर्ज के बोझ से देश लदता जा रहा है। असल में देश को विदेशी एजेंसियों, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.), विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) तथा अडानी अंबानी जैसे महाभ्रष्ट याराना कॉरपोरेट घरानों को सौंपा जा चुका है। भारत में नौजवानों ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए जो सपने देखे थे वे चकनाचूर कर दिये गये। उन्हें मिली भूख, गरीबी, बदहाली, बेरोजगारी, अशिक्षा, अफसरशाही और तानाशाही।

हम बेरोजगार क्यों?

हममें से बहुत से नौजवान ये जानना चाहते है कि क्यों उनकी तकदीर में बेरोजगार रहना लिखा है? देश इन करोड़ों करोड नौजवानों के बाजुओं की ताकत का उपयोग अपने विकास के लिए क्यों नहीं कर पा रहा है? वैसे तो 15 अगस्त 1947 के बाद, देश में ईमानदारी और बेईमानी के बीच, अमीरी और गरीबी के बीच, महलों और झोपड़ियों के बीच, मेहनत करने वालों और लुटेरों के बीच खाई पटने के बजाय लगातार गहराती गई है। लेकिन विशेष रूप से पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से नयी आर्थिक नीति को लागू करने के बाद जैसे कहर आ गया है। आर्थिक सुधारों के नाम पर बहुराष्ट्रीय पूंजी और बहुराष्ट्रीय / कॉरपोरेट कंपनियों को खुलेआम बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में व्यापारिक लूट मचाकर और अमीर हो जाने की पूरी तरह छूट दे दी गई है। मानो ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों द्वारा दो सौ वर्षो तक देश को लूटा जाना ही काफी न रहा हो। पिछले दस सालों में भारत की जनता के जन जीवन को तबाह करने वाली मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग सरकार , स्वदेशी की आड़ में विदेशी गुलामी लादने वाली सरकार,भूमंडलीकरण – निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों को ताबड़तोड़ तरीके से लागू कर रही है। यही कारण है कि बेरोजगारी ने 1947 के बाद से विकराल रूप धारण कर लिया है।

देश नई गुलामी की ओर

अमरीकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में तमाम यूरोपियन साम्राज्यवादी ताकतें, पुराने तरीके से देश को उपनिवेश (गुलाम) न बनाकर अप्रत्यक्ष तरीके से नयी गुलामी (नवउपनिवेश) लाद रही है। चाहें केन्द्र सरकार हो या किसी भी राजनैतिक दल के नेतृत्व में चलने वाली राज्य सरकार हो सभी, विदेशी साम्राज्यवादी ताकत, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन सहित तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों/ कॉर्पोरेट के इशारे पर नाच रहे हैं। इन्हीं के निर्देशों पर साक्षर भारत के लाखों प्रेरकां, एस.आर.सी. कर्मचारियों व अन्य असगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की छटनी की गई है। पेटेन्ट कानून को बदलकर दवाओं की कीमतें बहुत अधिक बढ़ाई गई है। इन्हीं के हित में लाखों बड़े व लघु औद्योगिक इकाईयों को बंद कर बड़े पैमाने पर मजदूरों की छटनी की जा रही है। 44 श्रम कानूनों को 4 श्रम कोड में बदलकर महनतकशों के संगठित होने और संघर्ष करने का अधिकार छीन लिया गया है। कॉरपोरेट परस्त फासिस्ट मोदी सरकार द्वारा खेती किसानी को कॉरपोरेट घरानों के हाथों सौंपने के लिए कृषि विरोधी तीन कानून लाए गए थे।जिनके खिलाफ ऐतिहासिक किसान आंदोलन में 750 शहीदों ने कुर्बानियां दी। किसान आंदोलन आज भी जारी है।बैंक, बीमाक्षेत्र सहित केन्द्र व राज्य सरकार के कई संस्थाओं में रिक्त पदों पर नई नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। यहां तक कि सेना में भी अग्निवीर के नाम पर अस्थाई / संविदा नियुक्ति की जा रही है।नई शिक्षा नीति 2019 लागू होने के बाद शिक्षा का भगवाकरण और निजीकरण बड़े पैमाने पर हो रहा है।शिक्षा, स्वास्थ्य समेत तमाम समाज-कल्याणकारी योजनाओं पर सरकारी खर्च कम किया गया है। स्कूलों, कॉलेजों में भीषण फीस बढ़ाई जा रही है।गरीबी और मंहगाई बेहिसाब बढ़ गई है। जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्सों से बने सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों और अन्य सरकारी संस्थानों को बिल्कुल कौड़ियों के दाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों/ कॉर्पोरेट को बेच दिया गया है। चारों तरफ स्थायी नौकरी देने की जगह अस्थायी रूप से शिक्षा कर्मी, गुरूजी, प्रेरक आदि को ठेके/ संविदा पर रख कर बेरोजगारों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। शिक्षा को निःशुल्क, अनिवार्य एवं बेहतर बनाने की जगह अमीरों के लिए अलग व गरीबों के लिए अलग शिक्षा की नीति बनाकर दो प्रकार के नागरिक बनाए जा रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारी अब सरकार खुद न उठाकर आम जनता के कंधों पर डाल रही है तथा नई शिक्षा नीति में अभूतपूर्व तरीके से शिक्षा का निजीकरण एवं व्यवसायीकरण किया जा रहा है।

निजीकरण एवं उदारीकरण के परिणाम

शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण के बहाने बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों एवं विदेशी विश्वविद्यालयों को प्रवेश दिया जा रहा है। निजीकरण के चलते उच्च शिक्षा अब आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई है। इस नयी नवउदारवादी आर्थिक नीति से देश के अमीरों को मिला है और ज्यादा अमीर बनने का रास्ता और ज्यादा आसान ढंग से। उच्च मध्यमवर्ग को मिले हैं और ज्यादा विदेशी कंपनियों के आधुनिक उपभोक्ता सामान। और आम परिवारों और नौजवानों/ नवयुवतियों के कोटे में है मध्यप्रदेश के व्यापम और उत्तर प्रदेश के परीक्षा प्रश्न पत्र लीक जैसे घोटाले और अधिक भ्रष्टाचार, शेयर घोटाले और ज्यादा मंहगाई,गलाकाट प्रतियोगिता,कोटा जैसे कोचिंग संस्थानों में भीषण अपेक्षाओं का दबाव न सहन कर पाने और बेरोजगारी के चलते और आत्महत्या,पेट्रोल/ डीजल और गैस की कीमत और बिजली की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि, विदेशी लूट का और ज्यादा बाजार गर्म और ज्यादा बदहाली और ज्यादा निराशा। विशेषकर नोटबंदी और जी.एस.टी. ने तो आम जनता की कमर ही तोड़ दी है।

जब इन सारे कुचक्रों से हम युवाओं को गुलाम बनाया जाता है और हालात को बेहतर बनाने के लिए अपनी स्वाभविक विद्रोह-भावना के चलते जैसे ही नौजवान सड़क पर उतरने लगते हैं तो उन्हें बहकाने और उनकी सोच को गलत दिशा में मोड़ने के लिए और नए करतब सामने आते हैं। पहले तो उन्हें टीवी, सिनेमा, सौंन्दर्य प्रतियोगिताओं और तमाम प्रचार माध्यमों के जरिए पश्चिमी यूरोपीय सभ्यता की सड़ी-गली पूंजीवादी साम्राज्यवादी संस्कृति का जहर पिलाया जाता है। अपने देश की इज्जत, इससे मुहब्बत करने की जगह अपसंस्कृति का जहर तमाम पेप्सी कोला, कोका कोलाओं की बोतलों से हमारे देश के शासक, नौजवान को पिलाते हैं। जो नहीं पीते उनके लिए पूर्ण स्वदेशी की शुद्ध भांग,” धर्म खतरे में है” के नाम पर कट्टर

धार्मिक उन्माद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद,देश को लूटने वाले भगवा कॉरपोरेट गठबंधन के खिलाफ आक्रोश वाली सच्ची देशभक्ति की जगह मुसलमानों से नफ़रत वाली जहरीली अंधराष्ट्रवाद,गरीबी भुखमरी बेरोजगारी के मामले में दुनिया में सबसे पिछले पायदान पर लुढ़ककर पड़ोसी देशों के खिलाफ युध्दोन्माद पैदा करना( ताकि जनता की मूल समस्याओं से ध्यान हटाया जा सके), मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगों की भीड़ द्वारा हत्या/ लिंचीग और भगवा गैंग संस्कृति के गांजे का नशा सरेआम घर-घर जाकर बेचा जा रहा है।

शहीदे आजम भगत सिंह का आह्वान

शहीदे आजम भगत सिंह ने जेल से ‘नौजवान कार्यकर्ताओं के नाम‘ लिखे पत्र में कहा, क्रांति से हमारा आशय स्पष्ट है। जनता के लिए जनता की राजनीतिक शक्ति हासिल करना। वास्तव में यही है ‘क्रांति‘ बाकी सभी विद्रोह सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी सड़ांध को ही आगे बढ़ाते हैं। किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जताई हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छिपा सकती, लोग छल को पहचानते हैं। भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ नहीं चाहते। भारतीय श्रमिकों को भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगारों को हटाकर जो कि उसी व्यवस्था के पैरोकार हैं, जिसकी जड़े शोषण पर आधारित हैं- आगे आना है। हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते।‘‘ शहीद भगत सिंह ने स्पष्ट भाषा में बताया था कि- ‘‘क्रांति से हमारा प्रयोजन यह है कि अन्याय पर आधारित वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन करना।‘‘ इसलिए आज वक्त की नजाकत है कि विद्यार्थी, युवा समुदाय शहीद भगत सिंह के पथ पर चलें। जनविरोधी पूंजीवादी कॉरपोरेट व्यवस्था के साथ चलने वाली राजनैतिक पार्टियाँ और उनके समर्थक अंग के रूप में कार्यरत युवा संगठन इन बुनियादी सवालों पर नौजवानों को दिशा नहीं दे सकते क्योंकि इन राजनैतिक दल और उनके युवा संगठनों ने उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण के आगे घुटने टेक दिया है।जनता का दुश्मन कॉरपोरेट घरानों के लठैत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना फासीवादी संगठन आरएसएस जिसका वैचारिक आधार मनुवादी/ ब्राम्हणवादी हिंदुत्व है,से जुड़े सांप्रदायिक, धर्मांध भगवा संगठन युवाओं को सांप्रदायिक जातिवादी आधार पर बांट रहे हैं। वे देश के इतिहास,संस्कृति और साझी शहादत साझी विरासत वाली गंगा जमुनी तहजीब को विकृत और सांप्रदायिक बना रहे हैं।भागवत, मोदी,शाह की तिकड़ी ने घोर अमानवीय ग्रंथ मनुस्मृति को भारत का संविधान बनाकर,देश को अपने आका महाभ्रष्ट कॉरपोरेट अडानी अंबानी का बहुसंख्यकवादी हिंदुराष्ट्र बनाने के लिए पागलों की तरह दौड़ लगा रहे हैं।हालात ये है कि जो युवा और विद्यार्थी इस निरंकुश संघी मनुवादी फासिस्ट निज़ाम के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उन्हें देशद्रोही या हिंदू धर्म द्रोही कहकर जेल में सड़ाया जा रहा है।

आज जरूरत इस बात की है कि युवाओं के सामने जो विशिष्ट समस्याएं हैं उनका वैज्ञानिक ढंग से समाधान करने के लिए उठ खड़े होना। और शहीदों के सपनों का भारत ,एक जातिविहीन सच्चा धर्मनिरपेक्ष लैंगिक समानतापूर्ण तमाम भेदभाव से मुक्त एक समतावादी जनवादी समाज के निर्माण के लिए एक संघर्षशील साम्राज्यवाद विरोधी, कॉर्पोरेट संघी मनुवादी/ ब्राम्हणवादी फासीवाद विरोधी प्रगतिशील युवा आंदोलन के झंडे तले नौजवानों / नवयुवतियों को संगठित करना।

लेखक -क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव हैं संपर्क- 9425560952