
।।द्वारा सिद्धार्थ न्यूज से नीलकांत खटकर।।
आज के अतिथि संपादक, समाजिक कार्यकर्ता, समाजिक चिंतक एवं विश्लेषक तरुण खटकर ने अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर उन्होंने क्या कहा उनकी ही कलम की लेख को पढ़िए,,,,,
वृद्ध हमारे समाज का महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ है परंतु अवस्था ढल जाने के पश्चात अक्सर इन्हें समाज में गैर जरूरी चीज मान लिया जाता है एक व्यक्ति जो हमारे समाज में एक संसाधन के तौर पर कार्य कर रहा था अचानक ही समाज पर बोझ लगनें लगता है कोई बात करने वाला नही होता पुछने वाला नही होता समझने वाला नही होता है।इस तरह बुजुर्गो के जीवन में एकाकीपन आना सामाजिक एवं सरकारी दृष्टिकोणों के कारण ही है परिवार समाज और सरकार के दृष्टिकोण से बात करें तों बुजुर्ग को केंद्र में रखकर कोई बड़ी नीति बनाई हो ऐसा देखने को नही मिलता सरकार और परिवार के केंद्र में फिलहाल बच्चे युवा और महिलाएं ही है जब तक इन्हें योजनाओं के केंद्र में नहीं लाया जाएगा उनके अनुसार योजनाएं नही बनाई जाएंगी तब तक उनकी समस्याएं समाप्त नही होगी जबकि बुजुर्ग की अपेक्षाएं सिर्फ इतनी होती हैं कि बेटा जब काम पे जाओगे तो बह यही कह देना कि मैं काम पे जा रहा हूं और काम से लौटने के बाद खाना खा लिए क्या या भोजन करने के समय प्यार से खाना खाने के लिए पुछ लेना इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए यह कोई कहानी का अंश नही है बल्कि ये एक तरह की अपेक्षा हैं जो हर बुजुर्ग की अपने बच्चों से होती है
आज अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है उन्होंने आगे कहा कि घर, परिवार, समाज, सरकार संभालने वाले हर किसी की जिम्मेदारी होनी चाहिए ।जिसने परिवार रुपी बगिया को संवारकर सदाबहार बना दिया उस बागबान को ताउम्र उचित सम्मान मिले। बुजुर्ग घर परिवार समाज में उस वटवृक्ष की तरह होते हैं जिसकी छांव में पूरा परिवार संस्कारित, संरक्षित, प्रसन्नचित और प्रगतिशील रहता है जिसके अनुभव,संबल और सांत्वना से जीवन के कठिन दौर में भी आसानी से पार पा लेते है।बुजुर्ग न केवल सम्माननीय है बल्कि वे अनुभवों की धरोहर है हमारे बच्चों को संस्कारवान बनानें की चलती फिरती पाठशाला है मुश्किल घड़ी में हमारे पथ प्रदर्शक है।