।।संपादकीय सोबरन सिंह,, द्वारा सिद्धार्थ न्यूज से नीलकांतखटकर।।
जो पुराने साथी बहनजी या मान्यवर कांशीराम साहब के बहुजन आंदोलन को गंभीरता पूर्वक समझते हैं वह अच्छी तरह जानते होंगे, कि अभी तक हमारी बहुजन समाज पार्टी उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी है, जिसको बहनजी और मान्यवर कांशीराम साहब अपने पार्लियामेंट में पहुंचते वक्त प्राप्त करना चाहते थे।*
*आपको इधर उधर की बातें न करते हुए सीधे-सीधे गंभीरता पूर्वक बताना चाहता हूं, कि वह लक्ष्य क्या था?*
*कुल सांसदों की 543 संख्या का 10 फ़ीसदी संख्या के रूप में पार्लियामेंट में पहुंचना, वह लक्ष्य था। यह आंकड़ा होता है 55 सांसदों का। बहनजी का लक्ष्य हमेशा यह सांसद संख्या प्राप्त करने की होती है? क्या हम बहनजी की मंशा पूरी कर सके ?? इतनी संसद संख्या होने पर हम पार्लियामेंट का कोरम पूरा कर सकते हैं, और किसी मुद्दे को संसद में उठाने लायक हैसियत हमारी हो जाती है।*
*मान्यवर कांशीराम साहब का ऐसा मानना था कि हमें अपनी सदियों से बिगड़ी हुई बात बनाने के लिए सबसे पहले अपने नेतृत्व पर अटूट विश्वास रखना होगा। वही अब बाबासाहेब या मान्यवर कांशीराम साहब कुछ करने के लिए हमारे बीच नहीं आने वाले। जो कुछ भी करना होगा वह हमें अपने बहनजी के नेतृत्व पर विश्वास करते हुए ही उनके बताए हुए पद चिन्हों पर चलते हुए ही हासिल करना होगा। अगर हम ऐसा करते हैं तो निश्चित ही वह सब हासिल किया जा सकता है जो हम चाहते हैं।*
*यह लक्ष्य हम बहुजन समाज को गांव-गांव कैडर कैंप देते हुए, अपनी बात को समझाते हुए, मेहनत करते हुए बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। संगठन के प्रति समर्पित लोग जो दिखाई दे रहे हैं, अपने दिल पर हाथ रख कर सोचें कि वह इस लक्ष्य के प्रति कितने गंभीर हैं?*
*निश्चित ही हम पाएंगे, हम बहुजन आंदोलन के प्रति नहीं बल्कि बहुजन राजनीति के प्रति गंभीर हैं। अगर हम बहुजन आंदोलन और बहुजन समाज की गैर राजनीतिक जड़ों को कैडर के मार्फत मजबूत करके रखेंगे तो बहुजन राजनीति, बहुजन समाज पार्टी के पीछे दौड़ती हुई नजर आएगी। केवल बहुजन राजनीति की तरफ ध्यान केंद्रित करेंगे उससे हम ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। हम शॉर्टकट में विश्वास रखते हैं, कि बहनजी इससे समझौता कर ले या उस पार्टी से समझौता कर लें और हम देश और प्रदेशों के शासक बन सकते हैं? हमें इन सब समझौते इत्यादि के चक्कर में न पड़कर बहन जी के आदेशों का पालन करना चाहिए। यह उठापटक समझौते की राजनीति बहनजी के विवेक पर छोड़ देनी चाहिए। बहनजी जो करेंगी निश्चित ही बहुजन समाज के हित में करेंगी।*
*शासक बनने के लिए इससे या उससे समझौता करने की जरूरत नहीं पड़ती है। शासक बनने के लिए वोटों की जरूरत पड़ती है और बहुजन समाज के पास वोटों का खजाना है। जिनके पास जमानत बचाने भर के वोट तक नहीं हैं यानी कि जो वोटों के मामले में बिल्कुल ही कंगाल हैं। हमारी नालायकी के कारण वह इन बहुजनों के वोटों के खजाने को साम-दाम-दंड-भेद की नीति से लूटके ले जाते हैं, और अपनी सरकारें बना लेते हैं।*
*उसी साम-दाम-दंड-भेद की चमक में मीडिया तंत्र हम को गुमराह करते हुए कांग्रेस जैसी पार्टी के पीछे लगा कर बीएसपी को पिछलग्गू पार्टी बनाना चाहता है?*
*कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, इस बात को बहुजन समाज को गंभीरता पूर्वक समझना चाहिए। सोलहवीं और सत्रहवीं लोकसभा में कांग्रेस अपने सांसदों की संख्या 2 अंकों (44),(52) से अधिक नहीं बढ़ा सकी। यहां तक की पार्लियामेंट का कोरम पूरा करने तक की हैसियत में नहीं आ सकी। आज पूरा मीडिया तंत्र उस कांग्रेस के सहारे और इशारे पर बहुजन समाज पार्टी को कांग्रेस का पिछलग्गू बनाने के लिए काम करता हुआ जी-जान से नजर आ रहा है और कांग्रेस अपना कद बौना किये हुए खुद ही भारतीय जनता पार्टी को देश का शासक बनाए हुए हैं।*
*अगर कांग्रेस चाहे तो अपना कद बढ़ाकर अपनी सांसद संख्या को 3 अंकों तक पहुंचा सकती है। लेकिन उसके ऐसा करते ही भाजपा का 3 अंकों का आंकड़ा 2 अंकों तक आने की संभावना हो जाती है। तभी देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बन सकती है। अगर कांग्रेस अपना कद बढ़ाते हुए अपनी सांसद संख्या 3 अंक तक कर लेती है और भाजपा 3 अंकों से नीचे नहीं आ पाती है। इसी बीच बहुजन समाज पार्टी अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हुए अपनी सांसद संख्या कुल सांसदों की 10 फ़ीसदी यानी कि 55 तक पहुंचा लेती है तो बहुजन समाज पार्टी की देश में सरकार बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकता है।*
*1937 के आसपास विश्व के कई देशों में इस तरह की स्थितियां पैदा हो गई थीं कि अस्थिर सरकारें बनने लगी थी तो इंग्लैंड, जापान, फ्रांस इत्यादि देशों में राष्ट्रीय सरकार बनाने का प्रचलन शुरू हुआ था। बहनजी और मान्यवर कांशीराम साहब के बहुजन आंदोलन की बदौलत से नौवें दशक के प्रारंभ में ही अस्थिर सरकारों के हालत भारत में भी पैदा होना शुरू हो गए थे। इन स्थितियों के पैदा होते ही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का चिंतित हो जाना स्वाभाविक रूप से शुरु हो गया था। इनको दिखाई देने लगा था, इन स्थितियों के चलते हुए जिस तरह इन दलों की मजबूरी पैदा हो गई थी उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनवाने की। ठीक वही हालात भारत देश में भी पैदा हो चुके थे। अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, सोनिया गांधी इत्यादि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेता राष्ट्रीय सरकार बनाने की योजना पर काम करते हुए नजर आने लगे थे। इस राष्ट्रीय सरकार बनाने की योजना में इन जातिवादी लोगों को एक खामी नजर आ रही थी कि इसमें बहुजन समाज पार्टी को भी हिस्सेदारी देनी पड़ेगी। फिर यह दूसरे फार्मूले पर काम शुरू करते हैं उसके तहत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का आगमन होता है।*
*आपने गौर किया होगा जब से भारत देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का आगमन शुरू हुआ है तब से ही अस्थिर सरकारों का दौर समाप्त हो चुका है। यह एक योजनाबद्ध तरीके से देश में कांग्रेस या भाजपा की सरकारें बनवाई जाने लगी हैं तथा प्रांतों में इसके बदले में यथास्थितिवादी जातिवादी पोषक दलों की सरकारें बनवाई जाने लगी है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के चलन के बाद ही अस्थिर सरकारों का दौर समाप्त हो चुका है।*
*अगर आप बहुजन युवा कमर कस के अच्छी तरह तैयारी कर लें तो इनका इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का दौर भी ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है।*
*यह चुनाव साम-दाम-दंड-भेद सरकारिया मशीनरी के सहारे जीत रहे हैं। आप बहुजन युवा के जागरूक होते ही इनकी सरकारिया मशीनरी का तंत्र भी छिन्न-भिन्न किया जा सकता है..क्योंकि जगज़ाहिर है कि चोर के पैर नहीं होते हैं?*
*वहीं आपको एक बात और बता कर हालांकि यह बात मैं बार-बार बता चुका हूं। अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा। दु:ख तब होता है जब बार-बार बात बताने के बाद भी आप बात को नहीं समझ पाते हैं। वह बात यह है कि पूरे देश के सभी राज्यों का अगर चुनावी आकलन किया जाए तो उत्तर प्रदेश ही एक ऐसा राज्य है जहां पर पिछली 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस गठबंधन को 73 सीटें प्राप्त हुई थी। भाजपा कांग्रेस गठबंधन मैं इसलिए कहता हूं कि मान्यवर कांशीराम साहब का इन दोनों के प्रति मानना था कि एक सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ। इन 73 सीटों को 2019 के लोकसभा चुनाव में बहनजी ने अपनी कुशल रणनीति के तहत बहुजन समाज पार्टी की 10 सीटें जीतते हुए कांग्रेस भाजपा गठबंधन का आंकड़ा 10 सीटें कम करते हुए 63 पर पहुंचा दिया था। अगर आप पूरे देश का आकलन करेंगे तो कहीं भी भाजपा कांग्रेस गठबंधन का आंकड़ा 10 सीटों का कम नहीं हुआ है। यहां तक कि 2019 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी लोकसभा की पिछली बार की तरह ही 65 में से 62 सीटें भाजपा के पास ही रहती हैं। इससे ज्यादा दरियादिली कांग्रेस की भारतीय जनता पार्टी के प्रति क्या हो सकती है? तब भी आप अगर कांग्रेस भाजपा गठबंधन को नहीं पहचान पा रहे हैं तो आपकी बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है।*
*यह भाजपा कांग्रेस गठबंधन को पीछे धकेलने की ताकत देशभर में मात्र बहनजी और उनकी बहुजन समाज पार्टी में ही है, बावजूद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के। इसके बाद देश के 5 राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, मणिपुर, दादरनागर हवेली एवं बिहार मिलकर क्षेत्रीय दल कांग्रेस भाजपा गठबंधन की 10 सीटें कम कर सके हैं। कांग्रेस भाजपा गठबंधन की बढ़ोतरी के मामले में देखा जाए तो वह सूरमा दल हैं जिनको कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के द्वारा उनके राज्यों में सरकारें थाली में परोस कर दी जाती हैं। जैसे पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, उड़ीसा, केरल,आंध्र, असम, हरियाणा, त्रिपुरा तथा पांडिचेरी इत्यादि जहां से कांग्रेस भाजपा गठबंधन की बढ़ोतरी 49 सीटों की होती है। समझदार लोग समझ सकते हैं कि यह बढ़ोतरी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के द्वारा इन राज्यों की सरकार बनवाने के एवज में भारतीय जनता पार्टी को प्राप्त कराई जाती है।*
*इस हिसाब से देखा जाए तो देश में बहुजन समाज पार्टी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो कांग्रेस भाजपा गठबंधन को रोकने में सक्षम है। यही कारण है कि अब जो राजनीतिक चुनावी लड़ाई रह गई है वह अंबेडकरवाद बनाम गांधीवाद बन चुकी है। अगर बहुजन युवा तैयारी कर ले तो पूरी तरह झूठ पर आधारित गांधीवाद को बहुत ही जल्दी पछाड़ा जा सकता है। इन विषयों पर देश का कोई मीडिया तंत्र बहस नहीं करना चाहता है?*
*सोशल मीडिया जो अपने को बहुजन मीडिया भी कहता है वह भी धन्नासेठों के जातिवादी मीडिया के सहारे और इशारे पर ही संचालित होने के कारण इन विषयों को छूना नहीं चाहता है? निश्चित ही मीडिया तंत्र के हिसाब से बहुजन समाज के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है। वहीं दूसरी ओर इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाते हुए कैडर कैंपों से अपने बहुजन आंदोलन को मजबूत करते हुए, बहुजन समाज बनाते हुए, हम बहुत ही जल्दी बहुजन समाज पार्टी के मार्फत देश के शासक बन सकते हैं। बशर्ते हमारी नीयत में बहुजन आंदोलन बढ़ाने की चाहत होनी चाहिए, राजनीतिक लक्ष्य हमें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा।*
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