बसपा में आस्था रखने वालों के कंधों पर बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। बसपा की मजबूती ही बहुजन समाज को चमचा युग से बाहर निकाल सकती है- लेखक इंद्र कुमार।

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(द्वारा एडिटर इन चीफ सिद्धार्थ न्यूज नीलकांत खटकर )

दिल्ली 19 जुलाई 2023 । (इंद्र कुमार की कलम से)आज हमारी मुलाकात दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले एक क्लास-2 गैजेटेड ऑफिसर से हुई। उसने बातचीत के दरमियान कहा कि पिछले 10 सालों में ‘मायावती’ (उसने ‘बहनजी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया) ने क्या किया है?हमने कहा कि हम पिछले दस सालों से सत्ता से बाहर हैं। आप कैसे कार्य की उम्मीद करते हैं? उसने कहा कि क्या बसपा के लोग किसी पीड़ित के घर जाते हैं? हमने कहा कि कितने लोग पीड़ितों के घर गए हैं? उसने कहा दूसरी पार्टियों के सांसद, विधायक, राहुल और प्रियंका गांधी आदि जाते हैं? हमने कहा कि बसपा ने भी हर सेक्टर में पदाधिकारी नियुक्त किए हैं। वे हर पीड़ित से मिलकर एफआईआर दर्ज कराने व अन्य सभी सम्भव मदद करते हैं।फिर उसने कहा कि मायावती कितनों के घर गई है? हमने कहा कि सोनिया गांधी, नरेन्द्र मोदी, जेपी नड्डा आदि कितने लोगों के घर गए हैं? फिर हमने कहा कि कम से कम राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष की तुलना राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं से कीजिए। आप की बुद्धिमत्ता ऐसी हो चुकी है कि आप राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तुलना सांसद, विधायक और पार्षद से कर रहे हो?

 

*इसके बाद उसने इस सवाल को छोड़ दिया। दूसरा सवाल किया कि मान्यवर साहेब की अलग बात थी। मायावती भटक चुकी है। क्या मायावती ने किसी गरीब की बहन-बेटी की शादी कराई है या कोई मदद दी? हमने कहा कि क्या बसपा का गठन लोगों की शादी कराने के लिए हुआ है? क्या मान्यवर साहेब गरीबों की बेटियों की शादी कराते थे जो बहनजी उनके दिखाए मार्ग से भटक गई हैं।उसने कहा कि चलो आपकी बात मान लेते हैं लेकिन कम से कम यदि किसी के घर डेथ हो जाय तब तो बसपा के नेताओं को जाना चाहिए। दूसरी पार्टियों के लोग अर्थियों को कन्धा देते हैं. ऐसा करने से लोग जुड़ते हैं। हमने कहा कि 2021-22 के अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश बसपा अध्यक्ष ‘मा. भीम राजभर’ जी सैकड़ों अर्थियों को कन्धा दिया, सैकड़ों बीमारों से अस्पताल जाकर कुशल-क्षेम जाना, मदद भी की लेकिन कितने वोट मिले? कितने लोग जुड़े? हमने कहा कि हमारा गरीब समाज अपने समाज के अधिकारियों को बड़ी इज्जत की नजर से देखता है। युवा उनको रोल मॉडल मानते हैं। इनकी बातों पर भरोसा करते हैं। कहते हैं कि भैया अधिकारी हैं, पढे-लिखें हैं, यदि कुछ कह रहे हैं तो सोच समझकर ही कह रहे होंगे। सही कह रहे होंगे। लेकिन उन बेचारों को क्या मालूम कि उनके समाज का अधिकांश पढ़ा-लिखा व अधिकारी वर्ग पान की गुमटी और नाई की दुकान जितना और जैसा ही ज्ञान रखता है। वह अपने पद और उम्र को अपनी मेरिट और सामाजिक योगदान समझता है।

 

*इस संदर्भ में मान्यवर साहेब और उनका अनुभव आज भी बहुजन समाज के ज्ञान चक्षु के कपाट खोलने में मददगार है। जब मान्यवर साहेब उत्तर प्रदेश में संघर्ष कर रहे थे तो उत्तर प्रदेश के बहुजन समाज से ताल्लुक रखने वाले सरकारी अधिकारियों (आईएएस, पीसीएस, आईपीएस और अन्य सभी क्लास-1 & 2) ने ही कांग्रेस व अन्य मनुवादी संगठनों के इशारे पर लगातार बहुजन समाज में मान्यवर साहेब और बसपा के खिलाफ़ दुष्प्रचार किया था। यही वजह थी कि मान्यवर साहेब ने इन बहुजन समाज से ताल्लुक रखने वाले अधिकारियों के बारे में कहा था कि – हमारा विरोध करना इनका धंधा है। आज मान्यवर साहेब के परिनिर्वाण के बाद ये अधिकारी भाजपा, कांग्रेस, सपा और मनुवादी दलों व संगठनों द्वारा फण्डित परतंत्र संगठन, दल व लोगों के इशारे पर बहनजी और बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं। मतलब कि बहनजी और बसपा विरोध का इनका धंधा आज भी बदस्तूर जारी है।*

बामसेफ, डीएस-4 से लेकर आज तक के सरकारी अधिकारी वर्ग में बहुजन आन्दोलन और बसपा के प्रति उनकी नकारात्मक सोच में कोई अंतर नहीं आया है। बसपा की सरकार ने इनकी विभागी योग्यता एवं जरूरी वरिष्ठता के मद्देनजर इस वर्ग को संबधित विभाग के शीर्ष पदों तक पर आसीन कर दिया जबकि योग्यता व वरिष्ठता होने के बावजूद भी कांग्रेस, भाजपा और सपा की सरकारों ने इनको किनारे ही रखा था फिर भी यह पूछता है कि बसपा और बहनजी ने क्या किया है। इसको समझने की जरूरत है कि आज वंचितों का मुखर होना बहनजी और बसपा की महत्ता और भारत राष्ट्र निर्माण में उनके अतुलनीय योगदान को रेखांकित करता है।

 

फिलहाल, इस वर्ग के रवैये को ध्यान में रखकर ही मान्यवर साहेब ने इसके चरित्र की चमचागीरी को चिन्हित किया था। मान्यवर साहेब इनकी दैनीय सोच को देखते हुए कहते हैं कि यह अधिकारी वर्ग सही चमचा भी नही बन पाया बल्कि मनुवादी चमचों का चमचा बनकर रह गया है। यह वर्ग आज भी मनुवादियों के चमचों का चमचा बनकर बहनजी और बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है जो कि अब इसका पेशेवर धंधा बन चुका है।फिलहाल, यदि बहुजन समाज के अधिकरी पान की गुमटी व नाई की दुकान वाले ज्ञान से चलेंगे तो समाज का क्या हश्र हो सकता है, उसका परिणाम सामने है। आज बहुजन समाज की राजनैतिक अस्मिता यदि कमजोर हुई है तो इसका जिम्मेदार पार्टी कम, उसके ऐसे गुमराह व सड़क छाप सोच वाले अधिकारी, बुद्धिजीवी, डाक्टर, लेखक, इंजीनियर, प्रोफेसर आदि ज्यादा हैं।

 

*बहुजन समाज का ये तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग न तो कभी कैडर कैंप ज्वाइन करता है और न अध्ययन करता है। यही वजह है कि आरक्षण से प्राप्त पद और अपनी उम्र को मेरिट समझने वाला यह वर्ग बुद्ध, बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के आन्दोलन, उनके सिद्धांतों, सूत्रों व कार्यशैली से पूरी तरह अनभिज्ञ है. इसका एक हिस्सा मनुवादियों के द्वारा उछाले गए सवालों को लपक कर बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करता है। ऐसा अधिकारी वर्ग आज बहुजन आन्दोलन को सशक्त करने के बजाय मनुवादियों के हाथों का हथियार बनकर बहुजन आन्दोलन की जड़ों पर ही प्रहार कर रहा है। अपने स्वार्थ या अज्ञानता में ऐसे अधिकारियों को प्रेरणास्रोत समझने वाले भी बहुजन आन्दोलन को क्षति पहुँचा रहें हैं। इनके संदर्भ में हम बेहिचक कह सकतें हैं कि – कमी बसपा में नहीं, बहुजन समाज में है।इन्हीं सब वज़हों के कारण मान्यवर साहेब बहुजन समाज को नालायक कहते थे। इनकी नालायकी दूर करने के लिए काम किया परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि यह लायक बनना ही नहीं चाहता है। फिलहाल, ऐसी परिस्थितियों में बहुजन आन्दोलन व इसकी वाहक बसपा में आस्था रखने वालों के कंधों पर बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। बसपा की मजबूती ही बहुजन समाज को चमचा युग से बाहर निकाल सकती है। इसलिए एकजुट होकर बसपा को मजबूत कर अपने शर्तों पर अपनी हुकूमत कायम करके ही भारत राष्ट्र निर्माण हेतु समतामूलक समाज का सृजन किया जा सकता है।

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